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हनीमून

'हनीमून' हर काम का एक क़ायदा होता है, जो क़ायदे से रहता है वो फ़ायदे मे रहता है। जो क़ायदे भूलता है वो निपटा दिया जाता है। दिक्कत यह है कि हम अपने शास्त्र पढ़ना भूल चुके, शास्त्रों मे अलग अलग प्रकृति के कार्यों के लिये अलग अलग स्थान, प्रक्रिया वर्णित है। उदाहरणार्थ मन और आत्मा की शुद्धि का विचार हो तो तीर्थ जाना उचित माना गया है, आमतौर पर जीवन भर के पाप धोने के लिहाज़ से बुढ़ापे मे ही ऐसा किया जाता है। फिर हनीमून के लिये भरी जवानी मे गोवा जैसी नमकीन जगह जाना शास्त्र सम्मत है। लेकिन कुछ नासमझ सैकड़ों वर्षों से प्रचलित इस व्यवस्था का उल्लंघन करते है और फिर दुख उठाते है। अभी समाचार था एक नामुराद लडका अपनी नई-नई बीबी को कडकडाती ठंड मे गोवा के नीले कुनकुने समुद्र के बजाय घर के सामने से गुजरती सीधी सड़क पर नाक की सीध मे मौजूद हर की पैढी में डुबकी लगवाने की गलती की, और अब तलाक़ के गड्डे मे है। ऐसा क्यो किया होगा उसने ? इसके पीछे आम हिंदुस्तानी बनिया वृत्ति से इंकार नहीं किया जा सकता है। गोवा जाने मे ज़्यादा नगदऊ खर्च होने की पूरी आशंका को देखते हुये इस समझदार बालक ने पास मे बह रही गंग

गधे की लीद

 *गधे की लीद* सीधी सी बात है, जिसकी भी लीद फ़ायदेमंद हो, लीपने, पोतने या मसाले बनाये जाने योग्य हो वो पूजा का हक़दार होता है हमारे यहाँ। उसके बैकग्राउंड में क़तार लग जाती है आरती सजाये लोगों की। उसका अंग प्रत्यंग पूजनीय हो उठता है। उसकी दुलत्ती आशीर्वाद का पर्याय हो जाती है और उसका रेंकना, राग रागिनियों और साहित्य की श्रेणी मे आ जाता है। उसकी लीद स्वादिष्ट सुगंधित और स्वास्थ्यवर्धक घोषित कर दी जाती है, उसके उपयोग से होने वाले इतने लाभ गिना दिये जाते है कि उससे दूरी रखने वाले उहापोह मे पड़ जाते है। उपयोगी लीद करने वाले के अवगुण चित नहीं धरे जाते। उसकी कमियाँ गिनाने वाले केवल लात खाने योग्य होते है। उसका कहा सुनने और उसकी ही मानने का चलन है हमारे यहाँ, और यह इसलिये क्योंकि उसकी लीद केवल उन लोगों मे ही बंटती है जो उसकी हाँ मे हाँ मिलाये। ये सारी प्रशंसा केवल उस भाग्यशाली के हिस्से की है जो हमें फ़ायदा पहुँचा सकता हो, लीद करता हो और इतनी ढेर सारी करता हो कि उसे इकट्ठा करने भर से हमारी हैसियत मे इज़ाफ़ा हो जाये, और फिर ये तारीफ़ें भी अनंतकाल के लिये नहीं होती। अस्थाई प्रकृति की चीज है ये, ज

विदाई के समय कैसे रोयें

शीर्षक पढकर चौंक गये? मैं भी चौंक गया था, लेकिन आपको चौंकने की जरूरत है नहीं। ये सात दिन का एक नया क्रेश कोर्स है जो हाल ही मैं कुछ यूनिवर्सिटीज में शुरू होने वाला है। बात बात पर रोने का अनुभव रखने वाली पुरखिन टाइप की औरतें इसके लिये प्रशिक्षक होंगी। मौसम है इस क्रेश कोर्स का, देवउठनी एकादशी से इस कोर्स को कर चुकने वालियों का इम्तिहान है पहला।  इस क्रेश कोर्स की जरूरत आखिर पडी क्यों? दरअसल फेसबुक वाट्सएप ईमेल टाइप के आॅनलाइन कोर्स कर चुकने वाली पीढी को इस कोर्स की जरूरत तो पडने वाली थी ही। अब भला आप ही बताइये फेसबुक वाट्सएप पर प्यार करने वाली पीढी की लडकी विदाई के समय रोयेगी? लिव इन में रह रही लडकी भला विदा होते समय क्यों रोये? उसके रोने का कोई बाजिव कारण हो तो वो रोयें? पिछले दिनों मैंने एक अखबार में पढा कि भोपाल की रहने वाली राधिका रानी ने इस कोर्स को करवाने व समाज का भला करने का जिम्मा उठाया है। वो ये कोर्स पूरी ग्यारंटी के साथ करवायेंगी। यदि विदाई के समय लडकी न रोये तो कोर्स के पूरे रूपये वापिस कर दिये जायेंगे। खबर बहुत रोचक थी, पढकर मैंने उस क्रेश कोर्स के सिलेबस पर गौर फरमाया तो